नेपाल में राजशाही समर्थकों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प में दो लोगों की मौत हो गई. कई घायल हैं. काठमांडू में सड़कों पर सेना को उतारा गया है. हालात बेकाबू हो रहे हैं, पड़ोसी देश में दहशत का माहौल है.
काठमांडू: राजशाही बहाली की मांग को लेकर पड़ोसी नेपाल जल उठा है! राजधानी काठमांडू में शुक्रवार को भारी हिंसक झड़पें हुईं. प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुए टकराव में दो लोगों की मौत हो गई, जबकि 30 से ज्यादा घायल हुए. हालात को काबू में लाने के लिए नेपाली सेना को तैनात किया गया है. कोटेश्वर, टिंकुने, बनेश्वर और एयरपोर्ट जोन में शाम 5 बजे से रात 10 बजे तक कर्फ्यू लागू रहेगा. कुछ इलाकों में किसी को भी घूमने-फिरने की इजाजत नहीं होगी. कर्फ्यू के बावजूद, वैध टिकट वाले यात्रियों को एयरपोर्ट जाने की अनुमति दी जाएगी. सरकार ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है.
नेपाल में हिंसा पर लेटेस्ट अपडेट
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- नेपाल पुलिस ने राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) के उपाध्यक्ष रवींद्र मिश्रा और महासचिव धवल शमशेर राणा को आज के हिंसक प्रदर्शन के दौरान उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है. दोनों नेताओं को ललितपुर के ग्वार्को इलाके से हिरासत में लिया गया. RPP के नेताओं पर हिंसा भड़काने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप है.
- काठमांडू में आज हुई हिंसा के बाद हालात पर चर्चा के लिए कैबिनेट की एक इमरजेंसी मीटिंग चल रही है.
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आज नेपाल में हिंसा कैसे भड़की?
हजारों प्रदर्शनकारी, जिनके हाथों में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के फोटो और नेपाली झंडे थे, टिंकुने इलाके में जमा हुए. उन्होंने पत्थरबाजी की, CPN-यूनिफाइड सोशलिस्ट्स के दफ्तर पर हमला किया और 8 वाहनों को आग लगा दी. चाबहिल स्थित भाटभटेनी सुपरमार्केट को लूटा गया, जबकि कान्तिपुर टीवी और अन्नपूर्ण पोस्ट के दफ्तरों को भी नुकसान पहुंचाया गया. पुलिस ने आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स तोड़ दिए. घायलों में आधे से ज्यादा पुलिसकर्मी हैं.
इसी दौरान, राजशाही विरोधी समूहों ने भी प्रदर्शन किया. संसद के पास जमा हुए गणतंत्र समर्थकों ने कहा कि ‘नेपाल अतीत में नहीं लौटेगा.’ पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम लोगों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे, इसलिए राजशाही समर्थक सिर उठा रहे हैं. लेकिन गणतंत्र ही भविष्य है.’
क्यों बढ़ रहा है राजशाही का समर्थन?
नेपाल में आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता से लोग तंग आ चुके हैं. कई लोग मानते हैं कि राजशाही के जमाने में देश ज्यादा स्थिर था. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 55 साल की प्रदर्शनकारी मीना सुबेदी ने कहा, ‘देश को तरक्की करनी चाहिए थी, लेकिन हालात और बिगड़ गए. राजा लौटे तो शायद सुधार हो.’
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का बढ़ता प्रभाव
2008 में राजशाही खत्म होने के बाद ज्ञानेंद्र शाह सार्वजनिक जीवन से दूर रहे, लेकिन हाल के महीनों में वे कई कार्यक्रमों में दिखे हैं. उनकी मौजूदगी ने राजशाही के समर्थकों को नई ऊर्जा दी है. 2001 में राजपरिवार की हत्या के बाद ज्ञानेंद्र गद्दी पर बैठे थे. 2005 में उन्होंने संसद भंग कर सीधे शासन शुरू किया, जिसके बाद विरोध प्रदर्शनों ने राजशाही को खत्म कर दिया.